विविध >> सफल जीवन कैसे जीयें सफल जीवन कैसे जीयेंबी. एल. वत्स
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ऐसा निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है। इसमें वे सब सूत्र समाहित हैं जिन्हें अपने जीवन में अपनाकर सभी महापुरुष सफल हुए। आवश्यकता इस बात की है कि हमारे जीवन में भी यह प्रेरणा जग जाय कि हम पहले से सौ गुनी उग्र विकृतियों में अपना लक्ष्य निर्धारित करते हुए अपना मार्ग चुन लें और साहस के साथ उस मार्ग पर चल पड़े।
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सफल जीवन कौन नहीं जीना चाहता ? किन्तु सफलता प्राप्ति के लिये सामान्यतः
जो विधि अपनाई
जाती है उसमें कहीं-न-कहीं कमी रह जाती है। इसी कारण सफलता दूर खड़ी नजर आती है। अपने जीवन के व्यवहारिक अनुभवों को जोड़ते हुए तथा जीवन में सफलता के लिये लेखक ने पैंतीस से अधिक महापुरुषों एवं सफल व्यक्तियों के जीवन की उत्क्रान्तियों का विश्लेषण करके सफलता का रहस्य ज्ञात किया है। व्यक्ति कब और कैसे सफलता प्राप्त कर सकता है ? सफलता पाने के लिये उसे क्या-क्या करना होगा ? पाठक इस कृति में वे सब उपाय पा सकेंगे जिनसे दुर्भाग्य को दोष न देकर कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी भी सफलता अर्जित की जा सकती है।
जाती है उसमें कहीं-न-कहीं कमी रह जाती है। इसी कारण सफलता दूर खड़ी नजर आती है। अपने जीवन के व्यवहारिक अनुभवों को जोड़ते हुए तथा जीवन में सफलता के लिये लेखक ने पैंतीस से अधिक महापुरुषों एवं सफल व्यक्तियों के जीवन की उत्क्रान्तियों का विश्लेषण करके सफलता का रहस्य ज्ञात किया है। व्यक्ति कब और कैसे सफलता प्राप्त कर सकता है ? सफलता पाने के लिये उसे क्या-क्या करना होगा ? पाठक इस कृति में वे सब उपाय पा सकेंगे जिनसे दुर्भाग्य को दोष न देकर कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी भी सफलता अर्जित की जा सकती है।
प्राक्कथन
अपने सदुद्देश्यों में सफलता कौन नहीं चाहता ? आप विद्यार्थी,
परीक्षार्थी, रोजगार के खोजी, कर्मचारी, व्यवसायी, शिक्षक, प्रशासक,
उद्योगपति में से किसी भी वर्ग का प्रतिनिधित्व क्यों न करते हों, किसी
वय-वर्ग किसी लिंग, जाति, धर्म प्रान्त अथवा देश के क्यों न हों अपने
कार्यों में सफलता चाहते हैं।
हमने अपने अर्जित ज्ञान और लम्बे अनुभव से तथा हर क्षेत्र में सफल व्यक्तियों की जीवनियों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करके कुछ सूत्र निकाले हैं। इन्हें अपने सुधी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। यद्यपि इस विषय पर अपने अनेक पुस्तकें पढ़ी होंगी किन्तु उनमें से अधिकांश में व्यवहारिक पक्ष की उपेक्षा ही देखी गई होगी। इस पुस्तक को लिखते समय हमने अपने व्यवहारिक अनुभवों का भी समावेश किया है, जिससे सफलता पाना आपका अधिकार बन जाएगा। यदि आप ईमानदार, परिश्रमी, लगनशील, दृढ़-संकल्पी और आस्थावान हैं, तो इस कृति की सहायता से प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।
ऐसा निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है। इसमें वे सब सूत्र समाहित हैं जिन्हें अपने जीवन में अपनाकर सभी महापुरुष सफल हुए। आवश्यकता इस बात की है कि हमारे जीवन में भी यह प्रेरणा जग जाय कि हम पहले से सौ गुनी उग्र विकृतियों में अपना लक्ष्य निर्धारित करते हुए अपना मार्ग चुन लें और साहस के साथ उस मार्ग पर चल पड़े। यदि इस दिशा में पाठक चल सके तो हम अपना श्रम सफल समझेंगे।
पुस्तक के प्रकाशन में भगवती पाकेट बुक्स ने जैसी रुचि ली है, वह अन्यत्र दुर्लभ हैं। इनकी प्रेरणा ही नहीं इस कृति का प्रणयन करा सकी है, हम उनके कृतज्ञ हैं। जिन रचनाओं की कृतियों का इस कृति में उपयोग हुआ है, उनके लेखकों एवं प्रशाशकों के हम आभारी हैं। पाण्डुलिपि तैयार करने में निशीथ वत्स ने हमारा बड़ा सहयोग किया है, हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं।
हमने अपने अर्जित ज्ञान और लम्बे अनुभव से तथा हर क्षेत्र में सफल व्यक्तियों की जीवनियों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन करके कुछ सूत्र निकाले हैं। इन्हें अपने सुधी पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। यद्यपि इस विषय पर अपने अनेक पुस्तकें पढ़ी होंगी किन्तु उनमें से अधिकांश में व्यवहारिक पक्ष की उपेक्षा ही देखी गई होगी। इस पुस्तक को लिखते समय हमने अपने व्यवहारिक अनुभवों का भी समावेश किया है, जिससे सफलता पाना आपका अधिकार बन जाएगा। यदि आप ईमानदार, परिश्रमी, लगनशील, दृढ़-संकल्पी और आस्थावान हैं, तो इस कृति की सहायता से प्रत्येक क्षेत्र में सफल हो सकते हैं।
ऐसा निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है। इसमें वे सब सूत्र समाहित हैं जिन्हें अपने जीवन में अपनाकर सभी महापुरुष सफल हुए। आवश्यकता इस बात की है कि हमारे जीवन में भी यह प्रेरणा जग जाय कि हम पहले से सौ गुनी उग्र विकृतियों में अपना लक्ष्य निर्धारित करते हुए अपना मार्ग चुन लें और साहस के साथ उस मार्ग पर चल पड़े। यदि इस दिशा में पाठक चल सके तो हम अपना श्रम सफल समझेंगे।
पुस्तक के प्रकाशन में भगवती पाकेट बुक्स ने जैसी रुचि ली है, वह अन्यत्र दुर्लभ हैं। इनकी प्रेरणा ही नहीं इस कृति का प्रणयन करा सकी है, हम उनके कृतज्ञ हैं। जिन रचनाओं की कृतियों का इस कृति में उपयोग हुआ है, उनके लेखकों एवं प्रशाशकों के हम आभारी हैं। पाण्डुलिपि तैयार करने में निशीथ वत्स ने हमारा बड़ा सहयोग किया है, हम उनके प्रति कृतज्ञ हैं।
अति अगाध जे सरित सर, जो नृप सेतु कराहिं।
चढ़ पिपीलिकहु परम लघु, बिनु श्रम पराहि जाहिं।
चढ़ पिपीलिकहु परम लघु, बिनु श्रम पराहि जाहिं।
- डॉ ० बी० एल० वत्स०
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सफलता क्या है
सुबह से शाम तक जी तोड़ मेहनत करके आधा पेट रहकर जीवन जीने वाला मजदूर
किसान क्या सफल जीवन जी रहा है ? अथवा शिक्षा का उच्चतम उपाधिकारी
बेरोजगार व्यक्ति क्या सफल जीवन जी रहा है ? दिन भर छल छदम करके
दस
रुपये के सौ रुपये बनाने वाला व्यापारी क्या सफल जीवन जी रहा है ? उच्च पद
पर बैठा हुआ प्रशासनिक अधिकारी जो दोनों हाथों से रिश्वत बटोर रहा है,
आन-बान शान का जीवन जी रहा है क्या सफल है ? आप चाहे कुछ कहे पर हमारा
उत्तर यहीं है कि इनमें से कोई भी सफल जीवन नहीं जी रहा है।
इसके विपरीत महात्मा गाँधी, स्वामी दयान्द स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, योगीराज अरविन्द, गोपालकृष्ण गोखले, जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे कस्तूरबा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, जगदीश चन्द्र बसु, विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर जमशेद जी टाटा, जमना लाल बजाज, सुभाषचन्द्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल एनी बीसेन्ट, प्रेमचन्द्र, जयशंकर प्रसाद, मैथिलिशरण गुप्त, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, प्रभृति विद्वानों, साहित्यकरों धर्मनेताओं, राष्ट्रभक्तों, समाज-सुधारकों, वैज्ञानिकों के जीवन के विषय में यदि किसी से पूछा जाय तो वह तुरन्त ही बोल पडे़गा इन सभी ने सफल जीवन जिया है। सफलता न तो अमीरी-गरीबी से आँकी जाती है न डिग्रियों से न उच्च पद से और न ही झूठे प्रदर्शन से। सफलता समाज द्वारा स्वीकृत आदृत नैतिक नियमों का दृढ़ता से पालन करने से ही अर्जित होती है। कोई सबसे बड़ा धनी भी तभी सफल कहला सकता है जब उसमें मानवीय गुणों का प्राचुर्य हो, जो जन-हित में प्राण-पणसे जुटा हो, जिसमें मानवीय संवेदनायें हो और जो अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए सदा तत्पर रहता हो।
इस विवरण से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि मानव-मूल्यों को सहज रूप में अस्वीकारने वाला, दृढ़ता से नैतिकता को जीवन में अपनाने वाला और कठिन से कठिन परिस्थितियों में विचलित न होकर उसमें लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ते रहने वाला व्यक्ति ही सफल है। भले ही वह सुदूर अतीत में रह चुका हो या वर्तमान में जीवित हो आने वाले भविष्य में भी उसी व्यक्ति को सफल माना जायेगा जो इस कसौटी पर खरा उतरे।
- सफलता में प्रत्येक लक्ष्य के प्रति लगन और निष्ठा ही आवश्यक है। लक्ष्य तो होना ही चाहिये जिसके प्रति व्यक्ति प्रयत्नशील है। किन्तु लक्ष्य प्राप्त न कर सकने पर भी वह व्यक्ति सफल ही माना जाता है। क्या गाँधी जी ही सफल थे ? सुभाष चन्द्र बोस नहीं ? क्या चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, अशफाक उल्ला, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई असफल थीं ? नहीं लक्ष्य मिले या न मिले उन्होंने उसे पाने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी थी। इसी कारण ये सब इतिहास में अमर हो गये। इन्होंने मानव मूल्यों की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। यही कारण है कि आज हम उनका स्मरण करते हैं उनके समान बनने का प्रयत्न करते हैं। यदि हमें अपने जीवन को सँवारना है तो हम इनका अपने जीवन में अनुसरण भी करते हैं।
- प्रतिष्ठत सदैव उच्चार्शों की हुआ करती है, इसलिए सदुपदेश्यों की प्राप्ति में तन-मन-धन से लगा हुआ व्यक्ति ही सफल माना जा सकता है। असत् कार्यों में लगा हुआ व्यक्ति यदि दुष्कर्मो में सफल भी हो जाए तो कोई सफल नहीं कहता। इससे इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि सदुद्देश्यों के लिए किए जाने वाले विशेष प्रयत्न ही हमें सफलता के शिखर पर पहुँचाते हैं। यदि किसी कारणवश हमें अपना उद्देश्य प्राप्त करने में सफलता न भी मिले तब भी हमारा जीवन सफल जीवन कहलाएगा।
सफल जीवन वही है जो औरों के लिए जिया जाता है। वेदव्यास कहते हैं-
इसके विपरीत महात्मा गाँधी, स्वामी दयान्द स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, योगीराज अरविन्द, गोपालकृष्ण गोखले, जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे कस्तूरबा गाँधी, लाल बहादुर शास्त्री, जगदीश चन्द्र बसु, विश्व कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर जमशेद जी टाटा, जमना लाल बजाज, सुभाषचन्द्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल एनी बीसेन्ट, प्रेमचन्द्र, जयशंकर प्रसाद, मैथिलिशरण गुप्त, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, प्रभृति विद्वानों, साहित्यकरों धर्मनेताओं, राष्ट्रभक्तों, समाज-सुधारकों, वैज्ञानिकों के जीवन के विषय में यदि किसी से पूछा जाय तो वह तुरन्त ही बोल पडे़गा इन सभी ने सफल जीवन जिया है। सफलता न तो अमीरी-गरीबी से आँकी जाती है न डिग्रियों से न उच्च पद से और न ही झूठे प्रदर्शन से। सफलता समाज द्वारा स्वीकृत आदृत नैतिक नियमों का दृढ़ता से पालन करने से ही अर्जित होती है। कोई सबसे बड़ा धनी भी तभी सफल कहला सकता है जब उसमें मानवीय गुणों का प्राचुर्य हो, जो जन-हित में प्राण-पणसे जुटा हो, जिसमें मानवीय संवेदनायें हो और जो अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए सदा तत्पर रहता हो।
इस विवरण से इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि मानव-मूल्यों को सहज रूप में अस्वीकारने वाला, दृढ़ता से नैतिकता को जीवन में अपनाने वाला और कठिन से कठिन परिस्थितियों में विचलित न होकर उसमें लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ते रहने वाला व्यक्ति ही सफल है। भले ही वह सुदूर अतीत में रह चुका हो या वर्तमान में जीवित हो आने वाले भविष्य में भी उसी व्यक्ति को सफल माना जायेगा जो इस कसौटी पर खरा उतरे।
- सफलता में प्रत्येक लक्ष्य के प्रति लगन और निष्ठा ही आवश्यक है। लक्ष्य तो होना ही चाहिये जिसके प्रति व्यक्ति प्रयत्नशील है। किन्तु लक्ष्य प्राप्त न कर सकने पर भी वह व्यक्ति सफल ही माना जाता है। क्या गाँधी जी ही सफल थे ? सुभाष चन्द्र बोस नहीं ? क्या चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, अशफाक उल्ला, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई असफल थीं ? नहीं लक्ष्य मिले या न मिले उन्होंने उसे पाने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी थी। इसी कारण ये सब इतिहास में अमर हो गये। इन्होंने मानव मूल्यों की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। यही कारण है कि आज हम उनका स्मरण करते हैं उनके समान बनने का प्रयत्न करते हैं। यदि हमें अपने जीवन को सँवारना है तो हम इनका अपने जीवन में अनुसरण भी करते हैं।
- प्रतिष्ठत सदैव उच्चार्शों की हुआ करती है, इसलिए सदुपदेश्यों की प्राप्ति में तन-मन-धन से लगा हुआ व्यक्ति ही सफल माना जा सकता है। असत् कार्यों में लगा हुआ व्यक्ति यदि दुष्कर्मो में सफल भी हो जाए तो कोई सफल नहीं कहता। इससे इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि सदुद्देश्यों के लिए किए जाने वाले विशेष प्रयत्न ही हमें सफलता के शिखर पर पहुँचाते हैं। यदि किसी कारणवश हमें अपना उद्देश्य प्राप्त करने में सफलता न भी मिले तब भी हमारा जीवन सफल जीवन कहलाएगा।
सफल जीवन वही है जो औरों के लिए जिया जाता है। वेदव्यास कहते हैं-
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनाद्वयम् ।
परोपकारः पुण्याय पापाय पर-पीडनम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय पर-पीडनम्।
अर्थात् अठारह पुराणों में वेदव्यास के दो वचन ही प्रधान हैं- परोपकार
पुण्य है और दूसरों को सताना पाप।
परोपकार जीवन को सफल बनाता है। अपना पेट तो पशु पक्षी भी भर लेते है और पेट-प्रजनन में ही सम्पूर्ण जीवन बिता देते है। मानव विवेकशील प्राणी है। वह सद्-असद का विवेक रखता है इस कारण स्वार्थ और परमार्थ के बीच ऐसा सेतु बना सकता है कि वह स्वार्थ केवल जीवन चर्या चलाने रहने भर हो और अपनी नब्बे प्रतिशत शक्तियाँ परमार्थ-परोपकार में नियोजित होती रहें। परोपकारी मृत्यु के बाद भी समाज द्वारा समादृत होता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने परोपकार प्रधान जीवन जिया। वे जीवनपर्यन्त समाज को ऊँचा उठाने के लिए कार्य करते रहे। यही कारण था कि राजा-महाराजा भी उनके सामने नतमस्तक होते थे। सम्पूर्ण समाज उन्हें भरपूर सम्मान देता था। अहिंसा इसी दिव्य गुण से जुड़ी हुई है। मन-वचन-कर्म प्रामाणिमात्र को कष्ट न पहुँचाना अहिंसा है। केवल परोपकारी ही ऐसा कर पाता है-
परोपकार जीवन को सफल बनाता है। अपना पेट तो पशु पक्षी भी भर लेते है और पेट-प्रजनन में ही सम्पूर्ण जीवन बिता देते है। मानव विवेकशील प्राणी है। वह सद्-असद का विवेक रखता है इस कारण स्वार्थ और परमार्थ के बीच ऐसा सेतु बना सकता है कि वह स्वार्थ केवल जीवन चर्या चलाने रहने भर हो और अपनी नब्बे प्रतिशत शक्तियाँ परमार्थ-परोपकार में नियोजित होती रहें। परोपकारी मृत्यु के बाद भी समाज द्वारा समादृत होता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने परोपकार प्रधान जीवन जिया। वे जीवनपर्यन्त समाज को ऊँचा उठाने के लिए कार्य करते रहे। यही कारण था कि राजा-महाराजा भी उनके सामने नतमस्तक होते थे। सम्पूर्ण समाज उन्हें भरपूर सम्मान देता था। अहिंसा इसी दिव्य गुण से जुड़ी हुई है। मन-वचन-कर्म प्रामाणिमात्र को कष्ट न पहुँचाना अहिंसा है। केवल परोपकारी ही ऐसा कर पाता है-
‘वैष्णव जन तो तेणे कहिए, जे पीर पराई जाणे रे।’
महात्मा गाँधी में यदि परोपकार की भावना न रही होती तो वे अहिंसा धर्म का
पालन कभी न पाते। परोपकारी अहिंसक तो होता ही है वह सत-पथ का अनुगामी भी
होता है। वह सदा सत्य को ही ग्रहण करता है और असत्य का परित्याग कर देता
है। गाँधी जी ने अपना समग्र जीवन की सत्य का प्रयोग बना दिया था। सत्य से
जुड़ी है- आस्था। सत्य तीनों कालों में एक-रूप रहने के कारण जगत के सहस्यो
को खोजने के लिए साधक को प्रेरित करता रहता है। ऐसा खोजी उस अनन्त सत्ता
से देर-सबेर अवश्य ही साक्षात्कार कर लेता है जो इस समग्र
विश्व-ब्रह्माण्ड का संचालन कर रही है। ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति से उसका
जीवन दिव्य बन जाता है। वह सहज योगी जैसा जीवन जीने लगता है। ऐसी स्थिति
में सहिष्णुता, मानवता, शिष्टाचार, ईमानदारी, समझदारी, जिम्मेदारी,
बहादुरी जैसे सदगुणों उसमें स्वमेव आते जाते हैं और वह महापुरुषों, साधको,
राष्ट्रभक्तों दार्शनिकों, विचारको, धार्मिकों, समाज-सुधारकों में गिना
जाने लगता है। इस प्रकार वह अपने जीवन के चारों पुरुषार्थ-धर्म, काम,
मोक्ष सहज ही प्राप्त करने में सफल हो जाता है।
सफलता के सोपान
सफलता कैसे प्राप्त होती है ? इस प्रश्न पर विचार करने के लिए हमें
प्रत्येक क्षेत्र में सफल व्यक्तियों के प्रयासों एवं
कार्यविधियों
पर दृष्टि डालनी चाहिए। हम साहित्य, विज्ञान, शिक्षा, राष्ट्रभक्ति,
नैतिकता, संस्कृति, धर्म, आदि विविध क्षेत्रों पर अपना ध्यान केन्द्रित
करते हैं। तो यही पाते हैं कि सफलता के लिए निम्नांकित सोपानों का अवलम्बन
लिया गया है-
1. दृढ़ संकल्प
2. अथक परिश्रम,
3. आत्मविश्वास,
4. कार्य की रूपरेखा,
5. एकाग्रता,
6. समर्पण,
7. उत्साह।
1. दृढ़ संकल्प
2. अथक परिश्रम,
3. आत्मविश्वास,
4. कार्य की रूपरेखा,
5. एकाग्रता,
6. समर्पण,
7. उत्साह।
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